वर्बल डायरियाः कोई क्या करे चुनावी मौसम में ये रोग हो ही जाता है !
एक भीषण रोग है verbal diarrhoea । हिन्दी में इसे मौखिक अतिसार भी कहा जा सकता है। वैसे तो हममें से कई प्रायः इसके हल्के फुल्के लक्षणों से ग्रस्त रहते हैं परन्तु चुनावी मौसम में नेता लोगों में इस मौखिक अतिसार की कुछ अधिक ही अति हो जाती है। इस रोग का ध्यान मुझे श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी के चिट्ठे 'कीचड़ उछाल स्पर्धा' को पढ़कर इस रोग के गलत निदान को देख आया। उन्होंने रोग के लक्षणों को देखा और इसे हाइपर थेथराइडिज्म रोग बताया। मैं उनके इस निदान से कतई सहमत नहीं हूँ। अब वे ठहरे इन्जीनियर सो कल पुर्जों के रोगों का निदान ही क्या इलाज भी जानते हैं। परन्तु इस बीमारी को पहचानने में गलती कर गए।
वे लिखते हैं संक्षेप में, वे इस बीमारी को क्या जानें! हम जैसे लोग जो स्कूल, कॉलेज में जब साराँश माँगा जाता था तो कविता या पाठ से भी लम्बा लिख आते थे वे ही इस रोग को सही पहचान सकते हैं। इसका ही तो चचेरा भाई लिखित अतिसार है। किसी ने सही कहा है,
'जाके पैर न फटी विबाई वो क्या जाने पीर पराई।'
सो भइया और बहिना, हम नेताओं की इस पीर को खूब समझते और पहचानते हैं। पुरानी पीड़ा जो है। चुनाव आयोग भी इसे समझता है, तभी तो 'गीदड़ भभकियाँ' भर ही देता है। आप कुछ भी कह लीजिए, बस हाथ काटने की बात मत करें। आज कुछ कहें, कल कुछ और, कौन पूछता है और यदि पूछे तो और भी अच्छा, कमसे कम सुर्खियों में तो रहेंगे।
खैर आज हम रोगमुक्त हैं सो इतना ही।
घुघूती बासूती
पुनश्चः
मेरे अंग्रेजी के ब्लॉग पर यह पोस्ट Systemic Hijack of Culture भी पढ़ने का कष्ट करें।
घुघूती बासूती
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मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ.
ReplyDeleteगुलमोहर का फूल
नये रोग की सूचना यह मौखिक अतिसार।
ReplyDeleteआये जहाँ चुनाव तो होते लोग शिकार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बिवाई वाली कहावत ही लेख का सार है और यही ज़िन्दगी का सार भी।
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम
यह तो अतिसार का अतिरेक है।
ReplyDeleteयह तो इस समय स्वायिन फ्लू से भी ज्यादा खतरनाक रूप से फैला हुआ है !
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है . बधाई.
ReplyDeleteआपने सही पहचाना - वर्बल और रिटन डायरिया सही है।
ReplyDeleteअब रोग पहचान में आ गया है तो निदान भी निकलेगा - यह आशा की जा सकती है! :)
सही कहा है आपनें .
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है...वर्बल डायरिया...वाह...ये रोग हर व्यक्ति को नेता बनते ही लग जाता है...हाँ चुनाव के दौरान ये जरा खतरनाक हद तक बढ़ जाता है बस...
ReplyDeleteनीरज
अंग्रेजी के उस शब्द को कितनी सुन्दरता से पारिभाषित किया आपने.बधाई भी आभार भी क्योंकि अब हम भी इस तत्सम शब्द का प्रयोग करेंगे.
ReplyDeleteनया विचार!!
ReplyDelete'जाके पैर न फटी विबाई वो क्या जाने पीर पराई।'
ReplyDeleteachchha aapke yahaan bhi yahee kahate hain log!
mosmi rogo ka ilaj koi nhi karta .
ReplyDeleteis nye rog ki khoj ke liye badhai.
shobhana
ना बाबा ना........हमें तो भगवान् बचाए इस रोग से,मौखिक अतिसार जिसका नाम है.....और पता नहीं कितने भयावह इसके काम है....आपने उत्तम बात कही है.....और हमने भी अति-उत्तम ढंग से समझ ली है....!!
ReplyDeleteप्रिय मित्र नेताओं को तो वर्बल डायरिया हो गया है वो ठीक , पर हमें क्या हो गया है कि हम किसी के ब्लॉग को ध्यान से पढ़ते भी नहीं ,मैंने लेख में सतावर के सारे नाम लिख दिए हैं ,आपने पढ़ लिया होता तो जान जाते कि सतावर को ही अंग्रेजी में एस्पेरेगस कहते हैं ,अरे भाई हम हिंद देश के वासी हैं ,अतः चीजों को पहले उनके हिन्दी नाम से ही पहचानेगे न ,माफ़ करना बड़े भाई कि मैंने आपकी गलती निकाल दी
ReplyDeleteअल्का जी,
ReplyDeleteहाहा! बिल्कुल सही गलती निकाली। क्षमा कीजिएगा। गलती मेरी ही थी। फिर से जाकर आपका ब्लौग देखा। न जाने क्यों मुझे लेख नहीं केवल चित्र दिखे। बाद में फिर से आपके ब्लौग पर गई और लेख पढ़ा। बेकार का प्रश्न पूछने के लिए अपनी भूल स्वीकार करती हूँ।
और मैं भाई नहीं बहन हूँ। हिन्द देश की निवासी हूँ किन्तु वनस्पति शास्त्र तो अंग्रेजी में पढ़ा था ना मैंने!
उत्तर देने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती